जितने घाव दिए हैं तुमने, वे मैंने इसलिए सहेजे ।
नयन नीर से पीड़ाओं की औषधियाँ तैयार करूँगा ।।
मैं तो ऐसा घर हूँ जिसमें
मात्र वेदनाएँ रहतीं हैं
निकली जो नयनों से नदियाँ
पहले वे भीतर बहतीं हैं
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे सब वंशवृद्धि में रत हैं ।
घावों की इस वंशबेल का सींच - सींच सत्कार करूँगा ।।
हो सकता है पूर्वजन्म में
मैंने कुछ पीड़ाएँ दी हों
सम्भव है वे पुनर्भरण में
तुमने मुझे समर्पित कीं हों
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे उस ऋण का चुकतारा हैं
पाउँगा - जीउँगा इसको, आगे नहीं उधार करूँगा ।।
जीवन खाता बही सरीखा
लेन - देन सारे हैं अंकित
सौदा कोई नया न कर लूँ
सोच - सोचकर हूँ आतंकित
जितने घाव दिए हैं तुमने, सहनशक्ति को परख रहे वे।
हँसकर सहन करुँगा लेकिन नया नहीं व्यवहार करूँगा ।।
किसे पता है इस दुनिया में
कितनी बार और आना है
आए तो भी क्या होंगे हम
यह रहस्य किसने जाना है
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे जैसे अनमोल धरोहर।
भीतर-भीतर ही चीखूँगा, व्यक्त किन्तु आभार करूँगा ।।
मेरे पास पुष्प हैं केवल
तुम चाहे सारे ले जाओ
मैं ना कभी उल्हाने दूँगा
चाहे प्रतिपल शूल चुभाओ
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे सब अब तक हरे-हरे हैं
प्रायश्चित के पावन पथ का मैं इनसे शृंगार करूँगा ।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
नयन नीर से पीड़ाओं की औषधियाँ तैयार करूँगा ।।
मैं तो ऐसा घर हूँ जिसमें
मात्र वेदनाएँ रहतीं हैं
निकली जो नयनों से नदियाँ
पहले वे भीतर बहतीं हैं
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे सब वंशवृद्धि में रत हैं ।
घावों की इस वंशबेल का सींच - सींच सत्कार करूँगा ।।
हो सकता है पूर्वजन्म में
मैंने कुछ पीड़ाएँ दी हों
सम्भव है वे पुनर्भरण में
तुमने मुझे समर्पित कीं हों
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे उस ऋण का चुकतारा हैं
पाउँगा - जीउँगा इसको, आगे नहीं उधार करूँगा ।।
जीवन खाता बही सरीखा
लेन - देन सारे हैं अंकित
सौदा कोई नया न कर लूँ
सोच - सोचकर हूँ आतंकित
जितने घाव दिए हैं तुमने, सहनशक्ति को परख रहे वे।
हँसकर सहन करुँगा लेकिन नया नहीं व्यवहार करूँगा ।।
किसे पता है इस दुनिया में
कितनी बार और आना है
आए तो भी क्या होंगे हम
यह रहस्य किसने जाना है
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे जैसे अनमोल धरोहर।
भीतर-भीतर ही चीखूँगा, व्यक्त किन्तु आभार करूँगा ।।
मेरे पास पुष्प हैं केवल
तुम चाहे सारे ले जाओ
मैं ना कभी उल्हाने दूँगा
चाहे प्रतिपल शूल चुभाओ
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे सब अब तक हरे-हरे हैं
प्रायश्चित के पावन पथ का मैं इनसे शृंगार करूँगा ।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
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