Tuesday, October 20, 2015

गीत

कौन जानता है जीवन के अगले पल में क्या होना है ?
बुझते-बुझते कई जल गए, कई बुझ गए जलते- जलते ।।

    समझो तो अपने जीवन में
        आने वाला पल कैसा है ?
    जिसमें घुप्प अँधेरा केवल
        ऐसी एक गुफा जैसा है !
उसी गुफा के भीतर जाकर  मैंने बार- बार देखा है
रुकते-रुकते कई चल गए, कई रुक गए चलते- चलते ।।

    जग में आए और गए सब
        जब भी जैसा जिनका क्रम था
    कई लोग ऐसे भी देखे
        जिन्हें सूर्य होने का भ्रम था
तम के सम्मुख समरांगण में उदय-अस्त का खेल निराला
उगते-उगते कई ढल गए, कई उग गए ढलते- ढलते ।।

    कुछ यायावर आगे निकले
        कुछ यायावर हमसे पिछड़े
    कुछ यायावर साथ चले तो
        कुछ यायावर असमय बिछुड़े
सम्बन्धों के इस अरण्य में ऐसा भी होता आया है
भाते-भाते कई खल गए, कई भा गए खलते-खलते ।।

    सपने-सा संसार सलोना
        जीने का रोमांच सघन है
    पर भविष्य से अनुमानों की
        जैसे जन्मजात अनबन है
हर रहस्य के सिंहद्वार पर लटके हुए नियति के ताले
खुलते-खुलते कई छल गए, कई खुल गए छलते- छलते ।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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