Monday, October 12, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 23


मंत्री की रूह

ठग

दिया हुक्म यमराज ने, जाकर के तत्काल।
उस मंत्री की रूह को, ले आ अभी निकाल।।
फैलाकर निज जाल, खबर झट देना मुझको।
वह ठग-पक्का घाघ, वहीं ना रख ले तुझको।।

चिन्ता

मुख पर उस यमदूत के, थी चिन्ता की रेख।
मंत्री जी की देह में, रूह नहीं; यह देख।।
बदल गया विधि लेख, सोचता मन में ऐसे।
मुझे यहाँ बिन रूह मिला यह जीवित कैसे?

चकरघिन्न

सोच-सोच करके थका, काम न आया ज्ञान।
डरा हुआ यमदूत भी, मन में था हैरान।।
विधि का ध्वस्त विधान, फर्ज किस तरह निभाऊँ।
मिली नहीं जब रूह साथ में क्या ले जाऊँ?

सेम्पल

नाम वह; चेहरा वही, रंग-रूप-आकार।
बोल-चाल अन्दाज सब, सेम्पल के अनुसार।।
देश, गाँव, परिवार, सही सब दिया दिखाई।
कहाँ गई है रूह बात यह समझ न आई?

घोषित शैतान

ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, तेजस्वी, गुणखान।
महा चार सौ बीस है, या घोषित शैतान।।
क्या इसकी पहचान, रूप चाहे जो धर ले।
ऐसा ना हो प्राण आज ये मेरे हर ले।।

क्लोन

इसने तो बनवा लिया, शायद अपना क्लोन।
सिम नम्बर तो एक पर, चला रहा दो फोन।।
खतरनाक है टोन, कहीं ऐसा ना कर ले।
मेरी रूह निकाल खुद की देह में धर ले।

स्टेंड

बढ़ती जा रही समस्या, दिखता कहीं न एंड।
आज मुझे यमराज जी, कर देंगे सस्पेंड।।
लेऊँ क्या मैं स्टेंड? जुगत किस तरह भिड़ाऊँ।
रूह यहीं पर छोड़, वहाँ बॉडी ले जाऊँ?

मार्गदर्शन

सेल फोन पर समस्या, बता रहा यमदूत।
बोले तब यमराज यों, मन को रख मजबूत।।
ताकत झोंक अकूत, अरे भोले सहयोगी!
मंत्री की है रूह छिपी कुर्सी में होगी।

बीज

कुर्सी में यमदूत को, मिली अनोखी चीज।
दिखा झलकता उसी में, मंत्री जी का बीज।।
निखरी हुई तमीज, नेह सबका पाती थी।
जाने पर नजदीक खूब बदबू आती थी।।

सरकारी रूह

मंत्री के भी रूह है, इसमें कितनी साँच।
इसीलिए तो लैब में, पड़ी करानी जाँच।।
मिला नतीजा बाँच, सत्य को विस्मय भारी।
आई जाँच रिपोर्ट, रूह है ये सरकारी।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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