चुनावी परिदृश्य
गड़बड़झाला
प्रत्याशी दो आ गए लगती कैसे रोक।अब क्या करें गणेश जी, दी दोनों ने ढोक।।
सके न उनको टोक, हुआ यों गड़बड़झाला।
राजनीति ने आज धर्म संकट में डाला।।
काँटे की टक्कर
चर्चाओं में व्यक्त यह, करते लोग विचार।काँटे की टक्कर यहाँ, फिर होगी इस बार।।
घूँसा है तैयार, काट बनने चाँटे की।
काँटों में ही सदा रही टक्कर काँटे की।
रैली-रोग
कहीं पालतू लोग हैं, कहीं फालतू लोग।दोनों के सहयोग से, फैला रैली-रोग।।
यह भी इक उद्योग, योग हो चाहे जो भी।
बुला रहे कर जोड़, सभी सत्ता के लोभी।।
दस्तूर
खड़ा हुआ तो क्या हुआ, पल में उतरा नूर।वोटर को भाया नहीं, खिसकी कुर्सी दूर।
आवश्यक दस्तूर, हमेशा इसे निभाना।
वोटर के अनुरूप पड़ेगा स्वांग रचाना।।
गंदगी
बढ़ा चुनावी दौर में, मलेरिया का जोर।सभी दलों की गंदगी, फैल गई चहुँ ओर।।
नहीं ओर या छोर, बड़ी मुश्किल है प्यारे।
भिन-भिन करते काट रहे हैं मच्छर सारे।।
नए दलाल
वोटर तो खामोश है, लीडर सब वाचाल।बात-बात में खींचते, हैं शब्दों की खाल।।
ये हैं नए दलाल, जाल ऐसा फैलाते।
ज्ञानी-ध्यानी लोग सदा जिसमें फँस जाते।।
चरित्र हार
बना पटाखा फुलझड़ी, चकरी बनी अनार।एक सीट के लिए हैं, सब कितने लाचार।।
चरित्र समूचा हार, रोशनी बनकर छाए।
दूषित करके वायु खूब मन में इतराए।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल
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