Wednesday, October 21, 2015

सब अपनाएँ शाकाहार

मांस नहीं खाएँ, ना ही जीवों को सताएँ
यह सबको बताएँ, सब धर्मों का सार
जैसा खाएँ अन्न, होगा वैसा ही मन
हम सब अपनाएँ शाकाहार

तनिक नहीं शरमाते हो, खुद को सभ्य बताते हो
भोले भाले जीवों को, काट-काट कर खाते हो
यदि जीवों को खाओगे तो, सचमुच पछताओगे
आने वाली नस्लों को, आदमखोर बनाओगे

करते हो कमाल, खाते जीवों को उबाल
फिर ठोकते हो ताल, तुमको धिक्कार
जैसा खाएँ अन्न, होगा वैसा ही मन
हम सब अपनाएँ शाकाहार

कैसे मनुज महान बने, धरती का भगवान बने
जीवों की लाशें खाकर, पेट जो कब्रिस्तान बने
नहीं समझ में आता है, अण्डा रोग बढ़ाता है
तुम न कभी अण्डे खाते, अण्डा तुमको खाता है

सण्डे हो या मण्डे, तुम कभी न खाओ अण्डे
सब छोड़ हथकण्डे, करो इसपे विचार
जैसा खाएँ अन्न, होगा वैसा ही मन
हम सब अपनाएँ शाकाहार

माने चाहे ना माने, सच्चाई को पहचाने
मानवता के माथे पर, हैं कलंक बूचडख़ाने
जितना चाहो धर्म करो, सारे ही शुभ कर्म करो
पशुओं की बलि चढ़ाते हो, इंसानों कुछ शर्म करो

थोड़ी भक्ति भी बढ़ाओ, थोड़ी शक्ति भी जुटाओ
अपनी ही बलि चढ़ाओ, तब माने संसार
जैसा खाएँ अन्न, होगा वैसा ही मन
हम सब अपनाएँ शाकाहार

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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