Thursday, October 1, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 13


आरक्षण

आग

अबकी बार चुनाव है, आरक्षण का खेल।
इस मुद्दे के सामने, बाकी मुद्दे फेल।।
लाठी, गोली, जेल, झुलसना हम देखेंगे।
धधक उठी है आग रोटियां वो सेकेंगे।।

इशारे

कहीं-कहीं मतभेद हैं, और कहीं मनभेद।
लोकतंत्र की नाव में, पड़े दिखाई छेद।।
नहीं किसी को खेद, अभी हैं दूर किनारे।
डूब जाएगी नाव, भँवर के समझ इशारे।।

चक्रव्यूह

प्रश्न विकट है सामने, सभी धनुर्धर मौन।
आरक्षण का चक्रव्यूह, तोड़ेगा अब कौन?
सभी अक्ल में पौन, द्रोण रचकर मुस्काए।
चकित-थकित अभिमन्यु याद अर्जुन की आए।।

आरक्षण

रेलों ने सबको दिया, अति दुर्लभ यह ज्ञान।
आरक्षण यदि नहीं मिला, सफर नहीं आसान?
सोओ चादर तान, नहीं अब धक्के खाओ।
जनरल बोगी छोड़ बर्थ आरक्षित पाओ।।


-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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