Friday, October 16, 2015

महिमा अपम्पार प्रिये!

तेरे मेरे प्यार की है ये महिमा अपरम्पार प्रिये !
हम दोनों अनभिज्ञ दिखे पर जान गया संसार प्रिये !

चोरी चोरी चुपके चुपके,
    तुम भी चहक रहे हो क्या ?
मैं तो महक रहा हूँ प्रतिपल,
    तुम भी महक रहे हो क्या ?

मन के कोमल भावों का है यह पावन विस्तार प्रिये !
हम दोनों अनभिज्ञ दिखे पर जान गया संसार प्रिये !

मैंने रात सिसकते काटी,
    तुम भी रोए-रोए हो
मैं दिन में सोया-सोया सा,
    तुम भी खोए-खोए हो

जग के सारे अनुमानों का, ठोस यही आधार प्रिये !
हम दोनों अनभिज्ञ दिखे पर जान गया संसार प्रिये !

जो भी घटित हुआ जीवन में,
    सब कुछ अपने आप हुआ
मैं क्या जानूं प्रीत में मुझसे,
    पुण्य हुआ या पाप हुआ

मेरी हार जीत जैसी है और जीत भी हार प्रिये !
हम दोनों अनभिज्ञ दिखे पर जान गया संसार प्रिये !

जो गुलाब है महकेगा ही,
    कोई टोक नहीं सकता
सूरज है तो चमकेगा ही,
    कोई रोक नहीं सकता

इसे छिपाने की हर कोशिश है बिलकुल बेकार प्रिये!
हम दोनों अनभिज्ञ दिखे पर जान गया संसार प्रिये !


-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
   

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