Thursday, October 15, 2015

जय फोकट के माल की

जानबूझकर ढीली छोड़ी कुछ गाँठें हर जाल की ।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की ।।

    वोट हमें देना प्यारे!
        हम खुशहाली ला देंगे
    दूध- दही की भारत में
        नदियाँ पुन: बहा देंगे
मुर्गी जन्म भैंस को देगी, करो व्यवस्था ग्वाल की।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की ।।

    कहते हैं देखो हमने
        कीर्तिमान हैं सभी छुए
    ऐसे काम किए जैसे
        अब से पहले नहीं हुए
अन्धे ने तस्वीर बना दी है गंजे के बाल की।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की ।

    कैसे - कैसे सपने हैं
        कैसी मार रहे शेखी
    हमको लगता है जैसे
        घोड़ी की देखादेखी                
चली मेंडकी के पाँवों में फिर से खुजली नाल की।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की।।

    वो मौसम बेदर्दी था
        और ये भी बेदर्दी है
    खादी कंधे पर लादे
        भटक रही फिर वर्दी है
रिश्वतखोरी कथा है जैसे विक्रम और बेताल की।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की।।

    बिना बात ही उलझे हैं
        लेना एक न देना दो ।
    सिर्फ समय की बर्बादी
        वह चाहे कितनी भी हो
सारे होली खेल रहे हैं गोबर सनी गुलाल की।
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की ।।

    अपनी गलती के कारण
        हम ही हक्के-बक्के हैं
    उनको जिम्मेदारी दी
        जो खुद चोर-उचक्के हैं
कुर्सी को अब समझ रहे वे जायदाद ससुराल की
हाथी-घोड़ा-पालकी, जय फोकट के माल की ।।






-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
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