Saturday, April 4, 2015

बिखराव जैसी है!

प्रेम की पूरी कथा, अलगाव जैसी है ।
यह समूची व्यवस्था बिखराव जैसी है ।।

इस क्षितिज से उस क्षितिज तक
       और उसके पार आगे
मन हो आरूढ प्रतिपल
        खूब भागे हम अभागे
दौड़ते ही हम रहे पर बढ न पाए
मार्गदर्शी सूचना तक पढ न पाए

जिन्दगी की यात्रा भटकाव जैसी है
यह समूची व्यवस्था बिखराव जैसी है

जन्म से पहले जगत में
     मृत्यु के पश्चात है क्या ?
पूछता हूँ मैं स्वयं से
     इस विषय में ज्ञात है क्या ?
ज्ञान कहलातीं अधूरी सूचनाएँ
आज जो बनवा रही हैं योजनाएँ

स्वप्न की दुनिया जुए के दाव जैसी है
यह समूची व्यवस्था बिखराव जैसी है।

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