Wednesday, July 28, 2010

रेल दुर्घटना



अब अगर कोई किसी से भी यह सवाल पूछे कि आजकल भारतीय रेलें कैसी हैं? तो जवाब मिलेगा कि बिल्कुल रेलमंत्री जैसी हैं। जैसी रेलमंत्री हैं, वैसी ही रेलें हैं। दोनों को ही सिग्नल दिखाई नहीं देते। दोनों ही चाहे जब, जिस किसी से टकराने के मूड में रहती हैं। दोनों के ही पास ऐसे टकराव की कोई वजह नहीं होती। हाँ टक्कर इतनी भयानक होती है कि देखने वाले डर जाते हैं। कुछ तो टक्कर की दहशत से ही मर जाते हैं।
पिछले चुनावों में उनकी टी.एम.सी. एक्सप्रेस ने सीपीएम एक्सप्रेस के ऐसी टक्कर मारी कि कांग्रेस का बायां और बीजेपी का दायाँ कान फट गया। घायल सीपीएम तो तब से अब तक शायद अस्पताल में भर्ती है।
रेल दुर्घटना में कई लोग मरे। जो मरे उन पर आश्रित लोग जीते जी ही मरे समान हो गए। रेल मंत्री का सारा ध्यान पश्चिम बंगाल के चुनावों पर है। रेल यात्री मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष गुहार लगा रहे हैं कि वे पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव जल्दी करवा दें। अगर वे जीत गईं तो पश्चिम बंगाल की सीएम बन जाएँगी और और अगर हार गई तो प्रधानमंत्री में उनका मंत्रालय बदलने की हिम्मत आ जाएगी। दोनों ही स्थितियों में रेलयात्रियों को राहत मिल जाएगी।
लोग कहते हैं कि नैतिकता के आधार पर उन्हें त्यागपत्र देना चाहिए। यह गलत बात है। राजनीति में नैतिकता को आधार बनाना गलत है। आधार हमेशा नीचे रहता है। ऐसे में नैतिकता के आधार पर चलने वाला राजनेता नैतिकता को कुचल देता है। नैतिकता की रक्षा करना प्रत्येक राजनेता का धर्म है। जरूरी है कि आधार वह स्वयं बने और फिर नैतिकता को जैसा चाहे वैसा चलाए। आजकल की राजनीति यही कहती है। अगर रेल दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ तो हो सकता है प्रधानमंत्री जनसंख्या नियंत्रण विभाग का भी प्रभार उन्हें सौंप दें।
फिलहाल उन्हें ध्यान रखना होगा कि फिलहाल वे रेलमंत्री हैं, जनसंख्या नियंत्रण मंत्री नहीं। वे चाहें तो यह बयान जारी कर सकती हैं कि रेल दुर्घटनाओं से बीमा कम्पनियों के कारोबार में उछाल आएगा जो कि बीमे के कारोबार और देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।


Sunday, July 18, 2010

रुपए का प्रतीक चिह्न


एक चुटकुले से बात शुरू कर रहा हूँ। हुआ यूँ कि शहर का एक बेईमान आदमी पन्द्रह रुपए का एक नकली नोट लेकर उसे चलाने के लिए गाँव में गया और गाँव के सीधे-सादे दुकानदार को पन्द्रह रुपए का नोट देकर कहा- ''इसके खुल्ले कर दो।" गाँव के सीधे-सादे दुकानदार ने पन्द्रह रुपए के नोट को लिया और गल्ले में से निकालकर साढ़े सात-साढ़े सात रुपए के दो नोट पकड़ा दिए।

आखिर हमारे रुपए को प्रतीक चिह्न मिल गया। मैंने अपने मौहल्ले के बोर्न जीनियस चकरम चाचा को बधाई दी लेकिन उन्होंने नहीं ली। मेरी बधाई मुझे वापस ऐसे लौटा दी जैसे कि सम्पादक किसी भी लेखक की रचना को 'सम्पादक के अभिवादन एवं खेद सहित' की पर्ची लगाकर बिना पढ़े ही लौटा देते हैं।

मैं अपमानित, आहत और आक्रोशित था। मैंने जिरह करने के अन्दाज में पूछा- ''आपने मेरी बधाई को ध्यान से सुना भी नहीं और वापस भी लौटा दिया! ऐसा क्यों किया?" उन्होंने जवाब दिया- ''प्रतीक चिह्न के विजेता का निर्णय करने वालों ने भी तो तीन हजार तीन सौ इक्कतीस प्रविष्ठियों में से शेष प्रविष्ठियों को बिना ध्यान से देखे ही वापस लौटा दिया था। जब उनसे उसका कारण नहीं पूछ सकते तो मुझसे इसका कारण क्यों पूछ रहे हो?"

मैंने कहा- ''लेकिन बधाई को तो कोई भी वापस नहीं लौटाता। आपने तो हद कर दी। बधाई ही लौटा दी!" वे बोले- ''बधाई तेरी थी। तूने कोई कीमती चीज, मुझे मुफ्त में दी। मैंने तेरी चीज तुझे वापस दे दी। तेरी कीमती चीज को मैंने मुफ्त का माल समझ कर हजम तो नहीं किया? तेरी कीमती चीज तेरे पास। इसमें नाराज होने की क्या जरूरत? बहुत ढूँढऩे पर गलती से ही सही, अगर कोई वाकई ईमानदार अधिकारी मिल जाए, तो मुफ्त के रुपए देकर देखना, वह रखता है क्या?"

स्वयं को निरुत्तर होते देख मैंने फिर मोर्चा सम्हालते हुए कहा- ''लेकिन हमारे रुपए को उसका अपना प्रतीक चिह्न मिल गया, क्या यह खुशी की बात नहीं हैं?" अबकी बार जवाब में उन्होंने सवाल पूछ लिया- ''रुपये को तो उसका अपना प्रतीक चिह्न मिल गया, लेकिन तुझको रुपया मिला क्या? रुपए को चिह्न मिला तो रुपया खुश होगा। तू काहे को खुश है? बेवजह खुश होता है और बेवजह दुखी! बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!"

मैंने पूछा- ''लेकिन चाचा! इससे आप खुश क्यों नहीं हो?" वे बोले- ''हमारे रुपए की असली समस्या हैं नकली नोटों का छपना। इस प्रतीक चिह्न से नकली नोट छपना बन्द हो जाएँगे क्या? बीमारी तो जुकाम की है और मलेरिया की दवा लेकर खुश हो रहे हो! भूखे आदमी को तो रोटी चाहिए और आप भूखे पेट पड़े आदमी को डिजाइनर ड्रेस दिलवाकर इतरा रहे हो! अरे भाई! करने के सारे काम करो, लेकिन पहले मूल समस्या से नजरें मिलाओ।" चकरम चाचा की बातों ने मुझे ऐसा चकरघिन्न किया कि मेरा दिमाग चकराने लगा और मैंने एक दोहा लिखा-

ऐसा भी बनवाइये, आप नया इक चिह्न।
नकली नोटों से दिखे, अपना रुपया भिन्न॥