Wednesday, June 30, 2010

शादी में स्टेआर्डर

"मियाँ-बीबी राजी तो क्या करेगा काजी?" लेकिन काजी की नाराजी कभी भी पलट सकती है बाजी। इसलिए अब शादी के लिए मियाँ-बीबी के साथ-साथ काजी का राजी होना भी जरूरी है। शादी करके कोई भी पक्ष मुकर जाए तो फिर गवाही में काजी ही काम आएगा और उस काजी की गवाही के आधार पर विवाद का फैसला भी कोई काजी ही करेगा। इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि मियाँ-बीबी राजी फिर भी कुछ न कुछ तो कर ही सकता है काजी।
शादी जब मुनष्यों की हो तो प्राय: एक ही काजी होता है लेकिन बैंकों की शादी में तो जिधर देखो उधर एक अलग काजी खड़ा दिखाई देता है। ऐसे में एक भी काजी की नाराजगी से सारा गुड़-गोबर हो सकता है। अभी बैंक ऑफ राजस्थान संग आई।सी।आई।सी।आई. बैंक के आशीर्वाद समारोह की योजना बन ही रही थी कि एक काजी साहब ने सगाई समारोह के आयोजन के खिलाफ बैंक ऑफ राजस्थान के परिवाजनों की शिकायत पर स्टेआर्डर जारी कर दिया। दूसरे काजी साहब ने परिवारजनों की मीटिंग पर स्टेआर्डर दिया।

स्टेआर्डर का अर्थ होता है- यथास्थिति। यानी अगला आदेश मिलने तक आप न तो आगे बढ़ सकते हो और न ही पीछे हट सकते हैं। जो, जिस स्थिति में है वह, उसी स्थति में यथास्थिति को बनाए रखेगा। अब मियाँ-बीबी आपस में राजी रहकर भले ही शादी के लिए खूंटे तुड़वाते रहें, लेकिन काजी की राजी के बिना मियाँ-बीबी के राजी होने का कोई मतलब ही नहीं रहा। परिणाम सामने है। दुल्हा और दुल्हन अगला आदेश मिलने तक सगाई, विवाह, विदाई और आशीर्वाद समारोह का आयोजन तो नहीं ही कर सकेंगे बल्कि उनके परिजन इन कार्यों की योजना बनाने के लिए निमित्त अधिकृत रूप से मिल भी नहीं सकेंगे। यह तो अच्छा हुआ जो यह स्टेआर्डर सगाई के मौके पर ही आ गया, अगर सुहागरात के समय स्टेआर्डर आ जाता तो परेशानी किसी भी स्तर तक बढ़ सकती थी।
बैंक ऑफ राजस्थान के परिवारजनों का मानना है कि यह रिश्ता ठीक नहीं है। आई.सी.आई.सी.आई बैंक इस शादी के होते ही उन्हें सताना शुरू कर देगा। इस रिश्ते के जरिये दरअसल वह बैंक ऑफ राजस्थान को डकारना चाहता है। अगर उनकी यह आशंका सही है तो इसे कहेंगे भारत में विदेशी बैंकों द्वारा आर्थिक आतंकवाद की शुरुआत।

खैर, जो भी हो साफ-सथुरा और पारदर्शी तरीके से हो। ऐसा न होने पर गड़बड़-घोटाले की संभावना बनी रहेगी। परिणाम शुभ नहीं होंगे। जैसे शादी के बाद हम शुभकामना के टेलीग्राम में लिखेंगे "आपका दाम्पत्य मंगलमय हो।" तार विभाग ने अगर साफ-सुथरे तरीके से काम नहीं किया तो वहाँ पहुँचे तार में लिखा होगा- "आपका दाम्पत्य दंगलमय हो।"

Tuesday, June 15, 2010

मूल निवास प्रमाण पत्र

पिछले दिनों अपनी बिटिया का मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिए सुबह ठीक साढे दस बजे कलेक्ट्रेट पहुँचा। दिन भर वहाँ के बाबुओं ने मुझे ऐसा चकरधिन किया कि शाम पाँच बजते-बजते तो मैं खुद अपना मूल निवास भूल गया। समस्या यह खड़ी हो गई कि अपना पता याद रह न रहने पर मैं घर कैसे जाऊँ? मजबूरी में मैंने मूल निवास प्रमाण पत्र के लिए अप्लाई किया तब जाकर घर लौट सका।

हुआ यों कि सावधानी से भरकर प्रस्तुत किए गए फॉर्म को बाबू ने लापरवाही से रिसीव किया। मैंने निवेदन किया-''देख लीजिए कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई है?" मैंने कहा-''मेरा परिवार पीढियों' से यहाँ राजस्थान में रह रहा है। मेरे पिताजी भी यहाँ राज्य सेवा में रहकर रिटायर हुए। बच्ची भी यहीं पैदा हुई है और यहीं इसने अपनी सारी पढाई की है। मेरी समझ से इसमें कोई प्रॉब्लम नहीं आनी चाहिए।" वह बोला-''प्राब्लम का फैसला तो आपकी समझ से नहीं, हमारी समझ से होगा।"

खैर, फार्म के साथ अटेच्ड सपोर्टिंग डोक्यूमेन्ट को देखते-देखते अचानक उसकी आँखों में चमक आ गई और उसके ओठों पर एक विषैली मुस्कान तैरने लगी। उसने गर्दन उठाई तथा मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा-''इन कागजात के आधार पर तो मूल निवास प्रमाण पत्र बनना बहुत मुश्किल है।" उसकी बात सुनते ही मेेरे कान्फीडेन्स की हवा निकल गई। मैंने पूछा- ''क्या प्राब्लम है?" उसने समझाया-''प्राब्लम ये है कि जिस जिले में आप दस साल से ज्यादा रहे हो, उसमें पिछले तीन वर्षों से लगातार नहीं रह रहे हो और इस जिले में आप अढाई साल से रह रहे हो तो यहाँ आप दस साल से नहीं रह हो। सरकारी कर्मचारी के लिए भी नियम, पिछले तीन वर्षों से लगातार इस जिले में रहने का है। हाँ, 6 महीने बाद यह आराम से बन जाएगा।"

मैंने कहा-''यार 6 दिन बाद तो काउन्सलिंग है। मुझे जयपुर जिले का नहीं राजस्थान का मूल निवासी होने का प्रमाण पत्र दे दो। माँगा भी वही है।" वह बोला-''माँगा तो राजस्थान का जाता है लेकिन नियमानुसार जिले का ही बनाया जाता है। राजस्थान के मूल निवासी होने का प्रमाण पत्र कहीं भी नहीं बनता। सारे पेच इसी बात में हैं। यहाँ तो सारा काम नियमानुसार ही होता है।" मैंने सोचा यार। क्या गजब का दफ्तर है? सारा काम नियमानुसार ही होता है। नियमानुसार का नियम यह है कि सही काम अटकना जरूर चाहिए, भले ही फर्जी काम आराम से हो जाए।

मेरी बात सुनकर उसे झटका लगा। वह कहने लगा-''अब आप चाहे जो समझिए साहब पर काम तो नियमानुसार ही होगा। हम तो साहब के सामने पुट अप कर देंगे। फिर उनके विवेक पर है वे करें, ना करें। वैसे सरकारी काम में कौनसा अफसर है जो अपना विवेक लगाएगा? सरकारी विवेक तो हम हैं, हमारा विवेक ही काम आएगा।"

उसका सारगर्भित व्याख्यान सुनकर मेरे होश उड़ हो गए। मैंने विनम्र होते हुए कहा-''भले आदमी। कई एग्जाम देने के बाद एक ही काउन्सलिंग में उसका नंबर आया है। यह भी निकल गई तो गजब हो जाएगा। ऐसा करो मुझे साहब से मिलवा दो।" वह बोला-''अभी तो नहीं है। आए तब मिल लेना।" मैंने पूछा-''कब आएँगे।" वह बोला-''इस बारे में हम क्या कह सकते हैं? वो हमारे साहब हैं, हम उनके साहब थोड़े ही हैं। वैसे वो साहब भी क्या है जो हर समय सीट पर बैठा मिल जाए।"

मैं समझ गया कि मेरा काम अटक चुका है। मैंने हँसते हुए कहा-''काम को इस पुराने तरीके से अटकाने में आपको भी क्या मजा आया होगा जब मुझे अटकवाने में ही नहीं आया।" उसने पूछा-''क्या मतलब?" मैंने कहा-''आप लोग काम करने की बजाय काम को अटकवाने के लिए बैठे हैं तो फिर तरीका भी इनोवेटिव होनो चाहिए। इसके लिए आप मूल निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन पत्र का नया परफोरमा बनाइए और उसमें आवेदक से पूछिए 1. नाम 2. पिता का नाम 3. ये कब से आपके पिता हैं। 4. पिछले दस वर्षों में कौन-कौन आपके पिता रहे? 5. पिछले तीन वर्षों से लगातार पिता का नाम? आदि।" मेरी बात सुनकर वह खुद हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। हँसते हुए उसने अगले दिन आने की तथा एक और सर्पोटिंग डोक्यूमेन्ट लाने की कारगर सलाह दी।

खैर अगले दिन मुझे मूल निवास प्रमाण पत्र मिल गया लेकिन मैं सोचने लगा कि सतयुग में एक सावित्री हुई थी जो यमराज से अपने पति के प्राण लेकर आ गई थी। उसने एक असम्भव सा काम कर दिखाया था। लेकिन इस कलयुग में उसे अगर यह कहा जाए कि आप कलेक्ट्रेट जाकर अपने बच्चे का मूल निवास प्रमाण पत्र बनवा लाओ तो उसके हाथ-पाँव फूल जाएँगे।