Wednesday, April 8, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 3

पैंतरेबाजी/बयान

चोट

पॉलीथिन में धर दिया, जोड़-जोड़ कर खोट।
पाँच साल तक यों चला, फटा-फटाया नोट।।
चलन बना यों चोट, सभी के उतरे मुखड़े।
जिसे भोगना पड़ा पूछिए उससे दुखड़े।।

मजबूरी

बाद चुनावों के बने, जिसकी भी सरकार।
उसमें घुसने के लिए, हम हर पल तैयार।।
समझो बरखुरदार, हमारी यह मजबूरी।
जनादेश का मान, बढ़ाना बहुत जरूरी।।

मुद्दा

ऐसा मुद्दा ढूँढ लो, मचा सकूँ मैं शोर।
प्रतिद्वंद्वी दिखने लगे, मुझसे ज्यादा चोर।।
संकट है यह घोर, नहीं खुद में अच्छाई।
प्रतिद्वंद्वी में खोज इसलिए रोज बुराई।

श्राद्ध

चमचों को बतला रहे, प्रत्याशी गुणखान।
करते जैसे श्राद्ध में, कौओं का सम्मान।।
बगुले वाला ध्यान, चलन देखा है ऐसा।
होते ही मतदान हाल जैसा था वैसा।।

मोल

मिला नहीं है हमारा, हमको खरीददार।
यों हम बिकने के लिए, हैं कब से तैयार।
करो नहीं तकरार, माल का मोल चुकाओ।
मोल चुकाकर खूब आप सेवाएँ पाओ।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)

मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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