Sunday, March 21, 2010

औसत का चक्कर

गणित के अध्यापक की
यह परेशानी थी
पिकनिक पर गए छात्रों को
नदी पार करानी थी

सबसे पहले उसने
समस्या को
गणितीय ज्ञान से आंका
फिर नदी की गहराई को
दस विभिन्न जगहों से नापा
दसों जगहों की गहराई का जोड़ लगाया
फिर उसमें दस का भाग दिया
नदी की गहराई का
औसत निकाल लिया

नदी की औसत गहराई
सिर्फ दो फुट आई
तथा कोई भी छात्र
चार फुट से छोटा नहीं था भाई

अध्यापक बोला-बच्चों!
बिल्कुल मत घबराओ
नि:संकोच नदी में उतर जाओ

छात्र नदी में उतरे
तो डूबने लगे
अध्यापक की विद्वता से
ऊबने लगे
हालात ने टोका
तो उसने
बढ़ते हुए छात्रों को रोका
कागज पैन सम्हाला

नदी की गहराई का औसत
दुबारा निकाला
नदी की गहराई का औसत
इस बार भी सिर्फ दो फुट आया
तो अध्यापक का दिमाग चकराया
बनकर के भोला
वह अपने आप से बोला

लेखे-जोखे ज्यों के त्यों
फिर छोरे-छोरी डूबे क्यों?

आप क्या समझे
यह किसी गणित के अध्यापक की
बेवकूफी की निशानी है?
नहीं दोस्त!
यह तो भारत सरकार के
वित्त मंत्रालय की कहानी है।

हमारा वित्त मंत्री
जब बजट बनाता है
तब सिर्फ आंकड़ों के
औसत से काम चलाता है
चूँकि वह समस्या की गहराई को
ठीक से नहीं नाप पाता है
इसलिए हमारी तरक्की का सपना
हर बार डूब जाता है

Monday, March 8, 2010

महिला सशक्तिकरण बनाम पुरुष निशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण के सरकारी अभियान का परिणाम यह आया कि मेरे घर में पुरुष निशक्तिकरण कार्यक्रम शुरू हो गया। अब पत्नी के सामने मेरी हालत ठीक वैसी है, जैसी कि शेरनी के सामने बंधे हुए बकरे की होती है। जिसे न तो वह खाती है और न ही मारती है, केवल डराती है। डर के मारे बकरे की जान हलक में अटकी रहती है।
घर में घुसते ही आदमी की हस्ती गिर जाती है। शायद इसीलिए घर की व्यवस्था 'घर-गिरहस्ती' कहलाती है। बेचारे आदमी की कोई हस्ती ही नहीं, लेकिन उसकी गिरी हुई हस्ती के प्रति किसी की सहानुभूति भी नहीं है। सभी की सहानुभूति महिलाओं के साथ है। परिणाम सामने है, हमारे देश में महिला आयोग तो है पुरुष आयोग नहीं है। महिलाओं के लिए आयोग और पुरुषों के लिए अभियोग! वाह मेरी सरकार! तुझे भी अन्याय करने का रोग।
महिलाओं को शिकायत है कि साल में सिर्फ एक दिन उनका आता है!! मैं उनसे कहता हू, बेचारे पुरुषों का तो एक भी दिन नहीं आता। बेशक महिला दिवस धूमधाम से मनाइये लेकिन पुरुषों के नाम पर भी दिन न सही, साल में कम से कम एक 'पुरुष रात्रि' तो होनी ही चाहिए। ताकि मामला सन्तुलित रहे।
महिलाओं के लिए लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल लगभग डेढ़ दशक से अटका हुआ है। ज्यादातर लोग बिल के समर्थक हैं। कुछ कट्टर विरोधी हैं। महिला आरक्षण का विरोध करने वाले मेरे मुहल्ले के एक नेता से मैंने प्रश्न किया-"आप महिला आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं? अगर महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिल भी गया तो क्या बिगड़ जाएगा?"
वे बोले- "दुबे जी! आप समझते ही नहीं हैं? समस्या उलझी हुई है। दूर तक की सोच जरूरी है। अगर हमने 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दीं तो उतनी ही आबादी पुरुषों की भी है। देर-सवेर 33 प्रतिशत सीटें पुरुषों के लिए भी आरक्षित करनी पड़ेगी। इस प्रकार 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए तथा 33 प्रतिशत सीटें पुरुषों के लिए आरक्षित हो जाएंगी। अब मान लो कुल 66 प्रतिशत सीटें महिलाओं और पुरुषों के लिए आरक्षित हो गईं, तो यहीं से मुसीबत शुरू होगी।"
मैंने पूछा- "क्या मुसीबत होगी?"
वे बोले- "बची हुई 34 प्रतिशत सीटों पर जो जीतकर आएगे वो क्या कहलाएगे? इसलिए हम विरोध कर रहे हैं।"
महिलाओं के प्रति पुरुषों का अन्याय जग-जाहिर है, लेकिन महिलाओं का पुरुषों के प्रति अन्याय है तो सही पर जगजाहिर नहीं। वह व्यक्तिगत है। बेचारा पुरुष भीतर-भीतर ही रोता रहता है। महिलाएं तो कह भी देती हैं। रो भी पड़ती हैं। लेकिन बेचारा पुरुष तो कह भी नहीं सकता और रो भी नहीं पाता। इसलिए उसकी पीड़ा की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।
महिलाओं के प्रति अन्याय समाप्त होना ही चाहिए। उसके लिए जो भी सम्भव हो प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए दूसरी अन्यायपूर्ण व्यवस्था को जन्म देने के हुनर में हमारी सरकारों का कोई जवाब ही नहीं है। कुल मिलाकर अब पुरुषों के हिस्से में तो रोना ही है, क्योंकि जिस समाज के माथे पर कन्या भ्रूण हत्या का कलंक लगा हो, उसमें यह सब तो होना ही है।

Wednesday, March 3, 2010

काव्य-पाठ

एकता कपूर का समाज शास्त्र

सभी चाहते हैं कि देश में राष्ट्रीय एकता आए। राष्ट्रीय एकता तो आई नहीं, एकता कपूर आ गई। उसने अनेक घरतोड़ सीरियल बनाकर एकता के महत्व को उजागर किया। योंकि एकता का महत्व वही जान सकता है जो विभाजित हो जाए।
एक सीरियल आया 'कहानी घर घर की।' मुझे आज तक पता नहीं चला कि ये किस घर की कहानी है जिसमें हर औरत षडयन्त्र करती हुई ही नजर आती है। सास-बहू और पति-पत्नी के सम्बन्धों पर एकदम नई अवधारणाएँ पति-पत्नी और सन्तानों की नई-नई महिमाएँ और वेराइटियाँ दिखाई देती हैं। पत्नी कभी नागिन की तरह फुफकारती है तो कभी शेरनी की तरह दहाड़ती है। पति कभी चूहे की तरह गायब हो जाता है तो कभी अचानक प्रकट होकर कुत्ते की तरह भोंकने लगता है।
कहीं माँ ओरीजनल है तो बाप फर्जी। बाप ओरीजनल है तो माँ फर्जी। खैर जैसी एकता कपूर की मर्जी। उसकी कहानियों में आयातित संतानों का भी प्रावधान है। और तो और तीन-चार बार मरकर भी पुनः जीवित हो जाने का विधान है। जब भी कोई खलनायिका रंगत में आ जाती है तो उसकी बिन्दी मोटी हो जाती है और ब्लाउज का साइज छोटा हो जाता है। वाह! क्या स्टाइल है? लेडीज की पहली पसन्द।
मैंने एकता कपूर के सीरियलों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण करने की चेष्टा की तो पाया कि उसकी कहानियों में अनेक प्रकार की पत्नियाँ मौजूद हैं। जैसे- मुख्य पत्नी, उप पत्नी, चुप पत्नी और गुपचुप पत्नी। सहायक पत्नी, लायक पत्नी, नालायक पत्नी और दुखदायक पत्नी। अतिरिक्त पत्नी, सामूहिक पत्नी, अर्द्ध पत्नी व अल्प पत्नी। संकल्पित पत्नी और वैकल्पिक पत्नी। औपचारिक पत्नी, अधिकृत पत्नी व पंजीकृत पत्नी। टणांट पत्नी, खुर्राट पत्नी, तदर्थ पत्नी, समर्थ पत्नी और सशर्त पत्नी आदि।
इसी प्रकार उसकी कहानियों में अनेक प्रकार के पति दिखाई दिए। जैसे- उत्पाती पति, खुरापाती पति और जज्बाती पति। रीजनेबल पति, कम्फरटेबल पति। फोल्डिंग पति, पोर्टेबल पति, वाशेबल और होम वाशेबल पति। मेव्रल पति, स्ट्रेचेबल पति व ऑटोमेटिक पति आदि।
उसकी कहानियों में यह सुविधा भी प्रत्येक पति-पत्नी को प्राप्त है कि एक एपिसोड में वे जिस प्रकार के हैं, अगले एपिसोड में वे अन्य प्रकार के भी हो सकते हैं। इसीलिए पिछले एपिसोड में जो जेठ था वह अगले एपिसोड में बाकायदा पति हो जाए तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
यों तो अनेक प्रकार के पति-पत्नी एकता कपूर के सीरियलों में दिखाई देंगे लेकिन सात जन्मों तक साथ रहने की कसम खाकर उसे निभाने वाले भारतीय किस्म के पति-पत्नी की एक झलक भी आपको दिख जाए तो मुझे भी बताना।
प्रख्यात हास्य कवि स्व. श्याम जवालामुखी ने मुझे एक मजेदार किस्सा सुनाया। हुआ यों कि एक मगरमच्छ अपने मित्र बन्दर को अपनी पीठ पर बैठाकर समन्दर की सैर करा रहा था। उसने बन्दर से कहा- ''दोस्त आज मेरी शादी की सिल्वर जुबली है। तेरी भाभी यानी मेरी मगरमच्छनी ने पहली बार मुझसे एक चीज माँगी है।'' बन्दर सावधान होते हुए बोला- ''ये कहा होगा कि मुझे बन्दर का दिमाग लाकर दो।'' मगरमच्छ बोला- ''कहा तो यही है लेकिन अब तू यह मत कह देना कि मैं अपना दिमाग तो पेड़ पर ही छोड़कर आ गया हूँ।'' बन्दर बोला- ''दोस्त बात दरअसल ये है कि मुझसे मेरा दिमाग महीने भर के लिए एकता कपूर किराए पर ले गई थी। कल ही महीना पूरा हुआ था। तू पहले बताता तो मैं जाकर ले आता। वह वहीं पड़ा हैं।'' मगरमच्छ कुद्ध होकर बोला- झूठ मत बोल। एकता कपूर के सीरियलों में दिमाग का क्या काम?