Saturday, April 4, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 1

गठबन्धन

जरदा तेरे पास है, चूना मेरे पास।
आजा गठबन्धन करें, स्वाद बनाएँ खास।।
पूरा है अभ्यास, रगड़ करके बाँटेंगे।
खाकर देंगे थूक; थूककर फिर चाटेंगे।।

ठाठ

अन्धे का कन्धा मिला, लँगड़ा हुआ सवार।
खूब ठाठ से चल पड़ी मिली-जुली सरकार।।
उत्तम हैं आसार, उतर न जाना रंगा।
जब तक अपना साथ, हाल तब तक है चंगा।।

कबूतर-बाज

देख रहे हैं हम सभी, राजनीति का खेल।
साँप-नेवले में यहाँ, होता आया मेल।।
सिद्धान्तों का तेल, निकलते हरदम देखा।
तभी कबूतर-बाज सभी कर लेते एका।।

खाज पर ताज

गठबन्धन की आड़ में, ठगबन्धन का राज।
सबने मिलकर लूट ली, लोकतंत्र की लाज।।
रखा खाज पर ताज, अशुद्धि रही मंत्र में।
घुसा वायरस घोर हमारे लोकतंत्र में।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)

मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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