Monday, April 6, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 2

कुर्सी महिमा

कुर्सी वंदना

कुर्सी तू बड़भागिनी, कौन तपस्या कीन।
अफसर-तस्कर-मंतरी, सब तेरे आधीन।।
भैंस बजाए बीन, अगर तुझको पा जाए।
कौआ गाने लगे गधा ज्ञानी कहलाए।।

ताकत रूहानी

बादल में ज्यों नीर है, शब्दों में ज्यों सार।
रोम-रोम में रम गया, त्यों कुर्सी का प्यार।।
कुर्सी में है यार, बड़ी ताकत रूहानी।
भगे बुढ़ापा दूर झलकने लगे जवानी।।

मुण्डन

हरदम कुर्सी राखिए, बिन कुर्सी सब सून।
कुर्सी अपने आप में, हेयर कटिंग सैलून।।
काटो तो ना खून, सभी को रोज निखरना।
कुर्सी पर ही यार! सरल है मुण्डन करना।।

बिन कुर्सी

जबरन झट हथियाइये, बनकर दावेदार।
जब तक कुर्सी नहीं मिले, राजनीति बेकार।
करो नहीं बेगार, आज ही बोलो हल्ला।
कुर्सी के बिन नेता लगता बहुत निठल्ला।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)

मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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