Wednesday, September 30, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 12

चुनाव घोषणा

दंगल

दंगल शुरू चुनाव का, जंगल में है जोश।
शेर-भेडि़ए कह रहे, कर-कर के रण-घोष।।
माफ कराते दोष, हिरण को कहते भैय्या।
चाचा है खरगोश भेड़ लगती है मैय्या।।

मतचट्टा

रहा जमाल्या सोचता, सुनकर यह आवाज।
मुझे जमालुद्दीन जी, कौन कह रहा आज।
बदल गया अन्दाज, समझ इतना ही पाया।
घोषित हुए चुनाव, द्वार मतचट्टा आया।।

उपजा ज्ञान

आया निकट चुनाव तो, उपजा हमको ज्ञान।
बढ़-चढ़ सब देने लगे, गुण्डे को सम्मान।।
होना मत हैरान, जान पर तन सकता है।
अन्टा करके टिकट विधायक बन सकता है।

वंशावली

भूले यदि वंशावली, कीजे एक उपाय।
इक चुनाव लड़ लीजिए, है यह उत्तम राय।।
देंगे सब बतलाय, दमड़ी एक ना लेंगे।
पुरखों का इतिहास विरोधी छपवा देंगे।।
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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