Monday, March 30, 2015

सबकी नियति निराली

किसी का बर्तन भरा हुआ है
       किसी का बर्तन खाली
            जग में सबकी नियति निराली ।

भिन्न -भिन्न है नियति सभी की
        हम ऐसे समझाएँ
भिन्न-भिन्न हाथों में हैं जैसे
        भिन्न -भिन्न रेखाएँ

किसी को झूठी पत्तल मिलती
      किसी को सज्जित थाली
            जग में सबकी नियति निराली

अपनी नियति भोगते पत्थर
        ज्यों सरिता में बहते
कहाँ पे जन्मे ,कहाँ पले हम
        आज कहाँ पर रहते !

कहीं अमावस का अँधियारा
     और कहीं दीवाली
            जग में सबकी नियति निराली

मंच,पटकथा, पात्र, दृश्य हैं
        यहाँ सुनिश्चित सारे
अभिनेता, अभिनेत्री, दर्शक
        सब अबोध बेचारे

कोई विस्मय से देखे और
     किसी ने दृष्टि घुमा ली
           जग में सबकी नियति निराली ।

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