Wednesday, August 24, 2011

अन्ना की अपील












धीरे-धीरे जकड़ रही हैं जंजीरें
धीरे-धीरे बिगड़ रही हैं तकदीरें
धीरे-धीरे कर्ज चढ़ा ही जाता है
भ्रष्टाचार का मर्ज बढ़ा ही जाता है

धीरे-धीरे हम लांघ रहे सीमा हर बर्बादी की
फिर से लडऩे ही होगी इक और जंग आजादी की


मैं अन्ना हूँ, जुल्म नहीं सह सकता हूँ
बर्बादी पर मौन नहीं रह सकता हूँ
मैं बंधक आजादी की तस्वीर दिखाने आया हूँ
गली-गली में नई क्रांति का ज्वार जगाने आया हूँ
देश के सिर से भ्रष्टाचार का दाग मिटाने आया हूँ
आजादी का खतरे में है, बस ये समझाने आया हूँ

खतरे में अस्मत लगती है गाँधी वाली खादी की
फिर से लडऩी ही होगी एक और जंग आजादी की

मैं अपने शब्दों में अब बारूद भर रहा हूँ प्यारे
लोकतंत्र खतरे में है आगाह कर रहा हूँ प्यारे
फिर इक अडिय़ल सत्ता से टकराने को तैयार रहो
कफन बाँधकर वंदेमातरम गाने को तैयार रहो
दीवारों में फिर बच्चे चिनवाने को तैयार रहो
स्वाभिमान से घास की रोटी खाने को तैयार रहो

भूल नहीं जाना बैचेनी मेरी काव्य मुनादी की
फिर से लडऩी ही होगी इक और जंग आजादी की

2 comments:

daanish said...

फिर से लडऩी ही होगी इक और जंग आजादी की

सच है !
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक खामोश रहोगे, जब तक घात न होगी ?

"दानिश"

SANJEEV RANA said...

मैं बंधक आजादी की तस्वीर दिखाने आया हूँ

फिर से लडऩी ही होगी इक और जंग आजादी की
शानदार रचना के लिए बधाई

बहुत खूब

Post a Comment