शादी से सिर्फ दो दिन पहले जिन पण्डित जी ने मेरा यज्ञोपवीत संस्कार करवाया उन्होंने मुझे ब्रह्मचर्य का व्रत दिलवाया। मैं कन्फ्यूज होकर सोचने लगा कि अगर मुझे ब्रह्मचारी ही रखना है तो ये मेरी शादी क्यों करवा रहे हैं? और अगर शादी करके मुझे गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करना है तो फिर ये मुझे ब्रह्मचर्य का व्रत क्यों दिलवा रहे हैं?
खैर कन्फ्यूजन बरकरार रहा लेकिन शादी भी हो गई। शादी के दौरान मैं अपने इस कन्फ्यूजन को मिटाने में व्यस्त रहा कि हमारे यहाँ शादी की वजह से कन्फ्यूजन होता है या कन्फ्यूजन की वजह से शादी। नीमच के शायर प्रमोद रामावत का यह शेर बार-बार मेरे भीतर गूँजता रहता
उम्र भर कैसे निभेगी, बस इसी से देख ले।
ब्याह करने जा रहा है, हाथ में तलवार है।
दरअसल हम भारतीय लोग बहुत कन्फ्यूज्ड हैं। कन्फ्यूजन से हमारा गहरा नाता है। अगर कन्फ्यूजन नहीं होता तो शायद हममें से कई लोग नहीं होते। कन्फ्यूजन-कन्फ्यूजन में हम सौ करोड़ हो गए लगते हैं।
कन्फ्यूज करने की प्रक्रिया हमारे यहाँ बचपन से ही शुरू हो जाती है। बचपन में मेरे दो आदर्श थे। एक मास्टर जी और दूसरे महात्मा जी। दोनों ने मिलकर मुझे कन्फ्यूज कर दिया। मास्टर जी कहते थे कि खूब काम करो और महात्मा जी बताते थे कि काम मनुष्य का दुश्मन है। मास्टर जी कहते रहते थे कि हिन्दी अंग्रेजी ''समस्त विष्यों की पूरी तैयारी करो'' और महात्मा जी निर्देश देते थे कि ''विषयों से दूर रहो।'' दोनों की बातें सुनकर मैं कन्फ्यूज हो जाता था।
कन्फ्यूजन-कन्फ्यूजन में ही मैं बड़ा हो गया। मैं बड़ा हो गया हूँ यह भी एक बड़ा कन्फ्यूजन ही साबित हुआ। जो भी हो मैंने बड़ा होते ही जान लिया कि यहाँ सब एक दूसरे को कन्फ्यूजन कर रहे हैं। कन्फ्यूज कर करके यूज कर रहे हैं। यूज कर करके फ्यूज कर रहे हैं।खैर कन्फ्यूजन बरकरार रहा लेकिन शादी भी हो गई। शादी के दौरान मैं अपने इस कन्फ्यूजन को मिटाने में व्यस्त रहा कि हमारे यहाँ शादी की वजह से कन्फ्यूजन होता है या कन्फ्यूजन की वजह से शादी। नीमच के शायर प्रमोद रामावत का यह शेर बार-बार मेरे भीतर गूँजता रहता
उम्र भर कैसे निभेगी, बस इसी से देख ले।
ब्याह करने जा रहा है, हाथ में तलवार है।
दरअसल हम भारतीय लोग बहुत कन्फ्यूज्ड हैं। कन्फ्यूजन से हमारा गहरा नाता है। अगर कन्फ्यूजन नहीं होता तो शायद हममें से कई लोग नहीं होते। कन्फ्यूजन-कन्फ्यूजन में हम सौ करोड़ हो गए लगते हैं।
कन्फ्यूज करने की प्रक्रिया हमारे यहाँ बचपन से ही शुरू हो जाती है। बचपन में मेरे दो आदर्श थे। एक मास्टर जी और दूसरे महात्मा जी। दोनों ने मिलकर मुझे कन्फ्यूज कर दिया। मास्टर जी कहते थे कि खूब काम करो और महात्मा जी बताते थे कि काम मनुष्य का दुश्मन है। मास्टर जी कहते रहते थे कि हिन्दी अंग्रेजी ''समस्त विष्यों की पूरी तैयारी करो'' और महात्मा जी निर्देश देते थे कि ''विषयों से दूर रहो।'' दोनों की बातें सुनकर मैं कन्फ्यूज हो जाता था।
हमारा सबसे बड़ा कन्फ्यूजन यह है कि हम खुद के अलावा और बाकी को बेवकूफ समझते रहते हैं। मैं पचास साल का हो गया हूँ। मेरे बच्चे कॉलेजों में पढ़ रहे हैं लेकिन मेरी माँ आज तक मुझे बेवकूफ ही समझती है। पत्नी सिर्फ समझती ही नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से घोष्ति करती है कि ''आप बेवकूफ हो।'' और बच्चे झुँझलाते हुए कहते हैं ''पापा! आप तो समझ ही नहीं सकते।''
सवाल ये है कि जिन तीन पक्षों के लिए मैं तिलतिल कर अपनी जिन्दगी जला रहा हूँ, वे तीनों मुझे क्या समझते हैं? यह अलग बात है कि मैं इन सबको बेवकूफ समझता हूँ।
3 comments:
wah sir kya likha hai. duniya waki kanfuse hai.
shandar
bahut bahut achhi rachna hai,,,:)
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