Saturday, February 6, 2010

प्रेमी-प्रेमिका युद्ध


प्रेमिका बोली ताने मार
अरे ओ मजनूं के अवतार!
जैसे कोई रद्‌दी अखबार!

ढोंगी जैसे कोई पुजारी
खतरनाक ज्यों बस सरकारी
तू और तेरी ईमानदारी
जैसे गाँवों में पटवारी

रोज समय पर मुझे बुलाता
नल की तरह लेट खुद आता
फिर भी कारण नहीं बताता
बोल-बोल तू क्यों हैं मौन?
आदमी है या टेलीफोन?
कहाँ गई तेरी डायलटोन?

प्रेमी बोला-ओ मेरी रानी!
फ्लाप फिल्म की घिसी कहानी
देरी से जो भी आता है
बडा वही माना जाता है
तुमको मैं ऐसे समझाता
पहुँचा करती चिट्‌ठी जल्दी
तार सदा देरी से जाता

प्रेमिका बोली होकर खारी
वाह रे बुद्धि से ब्रह्मचारी!
बडा स्वयं को बतलायेगा
नखरे इतने दिखलायेगा
नए बहाने सरकाएगा
हर वादे को बिसराएगा
आश्वासन से भरमाएगा
मुझको क्या मालूम था प्यारे
तू भी नेता बन जायेगा

अस्पताल का वार्ड है तू
फर्जी राशन कार्ड है तू
नकली चकाचौंध है तू
बढती हुई तोंद है तू
पोस्ट ऑफिस का गोंद है तू

शाम को मेरे घर पर आना
खुद आकर मेरे डैडी से
शादी की तू बात चलाना

प्रेमी बोला-ओ माई डीयर!
एक बात समझ लो क्लीयर
डैडी दिख जाता जब तेरा
बदन काँप जाता है मेरा
मेरे मन में भय जगता है
प्रेम सडक पर तेरा डैडी
मुझे स्पीड ब्रेकर लगता है

प्रेमिका बोली पर तू बढ जा
अपनी ही चाहत पर अड जा
बीमे के एजेण्ट सरीखा
जाकर छाती पर ही चढ जा

प्रेमी बोला-ओ मेरी प्यारी!
मुझको डर लगता है भारी
आखिर कैसे रिस्क उठाऊँ
तेरा बाप पुलिस अधिकारी

सारा मजनूँपन हर लेगा
नमक वो चमडी में भर देगा
तेरे बस थप्पड मारेगा
मुझको तो अन्दर कर देगा

प्रेमी को जब डरते देखा
आत्म समर्पण करते देखा
प्रेमिका विकराल हो गई
आँखे उसकी लाल हो गई

कहने लगी ओ पंचर टायर!
पढे-लिखे से ज्यादा कायर!
अब तक नहीं समझ में आया
तूने जीवन व्यर्थ गँवाया
सोचता है जो कर नहीं पाता
वाह रे भारत के मतदाता!

2 comments:

सुमन कुमार said...

मैं कवि नहीं हूँ,
क्योंकि कोई भी गुण
नहीं है हमारे अन्दर
जो होता है,
एक कवि में.
न तो दिखने में ही
कवि लगता हूँ,
और कवियो वाली पोशाक भी
नहीं पहनता.
फिर भी न जाने क्यों?
ऐसा लगता है,
दिल के कोई कोने में,
छुपा है.....
मेरा कवि मन.
जो चाहता है,
मुझे कवि बनाना.
उसके अन्दर दृढ इच्छा है,
कठोर परिश्रम है,
जो बदल देगा,
मेरा बजूद.
हाँ देखना एक दिन
वह जरुर बदल देगा,
और ला खड़ा करेगा,
मुझे........
भविष्य में कभी
कवियों की लम्बी लाईन में.

सुमन कुमार said...

सोच नाथू राम गोड्स की
जीवित रहना महात्मा गांधी का,
ठीक नहीं था, देश और खुद उनके सेहद के लिए.
आज सरेआम वलात्कार की जा रही है,
उनके सपनों के भारत की,
भर्ष्टाचार के बुलडोजर से .
मिटा दी गई है,
राम राज्य की निशानी,
अतिक्रमण का नाम देकर.
नहीं देख सकते थे हकीकत,
अपने सपनों के भारत की.
सांसे रुक जाती, जब होता,
मासूमों के साथ वलात्कार.
रूह कांप उठाता देखकर,
गरीबों का नरसंहार.
पूजा करते मंदिरों में......
अनसन करते, संसद के सामने.
हो सकता है, बेचैन आत्मा,
संसद भवन के पास भटकती,
मुक्ति के इन्तजार में.
कितना आगे था, सोच
नाथू राम गोड्स की,
जो भारत का वलात्कार होने से पहले,
कर दी, पवित्र आत्मा को मुक्त,
सदा के लिए...........

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