आदमी अपने पुरुषार्थ के बूते पर प्रधानमंत्री तो बन सकता है लेकिन इससे उसकी शादी भी हो जाए, यह जरूरी नहीं है। जिन्दगी के इस डिपार्टमेंट में पुरुषार्थ का रोल कम और प्रारब्ध का ज्यादा होता है।
नौकरी नहीं मिलने की वजह से मेरी शादी का प्रोजेक्ट पूरी तरह से खटाई में पड चुका था। मैं मन ही मन बहुत परेशान था। मुझसे भी ज्यादा परेशान थे मेरे मोहल्ले वाले। रिश्तेदार आशंकित और पडौसी आतंकित। कुल मिलाकर मेरा कुँवारापन एक विकराल समस्या बनकर उभर रहा था।
मैं मार्केटिंग का विशेषज्ञ था इसलिए मुझे अपने पुरुषार्थ पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था। किसी भी परिस्थिति में मैं हिम्मत हारने वाला नहीं था। अतः मैंने समाज के सभी वर्गों के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए अपनी मैरिज का मास्टर प्लान बनाया।
सबसे पहले मैंने अखबार में विज्ञापन छपवाने की सोची। लेकिन यह फैसला मैंने पहले ही ले लिया था कि अखबार में विज्ञापन तो देंगे क्लासीफाइड में नहीं देंगे क्योंकि विवाह योग्य युवतियों के बुढाते हुए पेरेन्ट्स क्लासीफाइड के बारीक अक्षरों को ठीक से नहीं पढ सके तो सारा गुड गोबर हो जाएगा। इसलिए फोटो सहित अलग से विज्ञापन छपना चाहिए ताकि सबकी नजर पडे। विज्ञापन का मैटर भी मैंने पूरा दिमाग लगाकर बनाया। लिखा कि विवाह की इच्छुक युवतियाँ निःसंकोच अपना बायोडेटा भेजें, बिल्कुल नहीं डरें। विवाह योग्य वर-कवि सुरेन्द्र दुबे। पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्र्वास करें।''
सबसे पहले मैंने अखबार में विज्ञापन छपवाने की सोची। लेकिन यह फैसला मैंने पहले ही ले लिया था कि अखबार में विज्ञापन तो देंगे क्लासीफाइड में नहीं देंगे क्योंकि विवाह योग्य युवतियों के बुढाते हुए पेरेन्ट्स क्लासीफाइड के बारीक अक्षरों को ठीक से नहीं पढ सके तो सारा गुड गोबर हो जाएगा। इसलिए फोटो सहित अलग से विज्ञापन छपना चाहिए ताकि सबकी नजर पडे। विज्ञापन का मैटर भी मैंने पूरा दिमाग लगाकर बनाया। लिखा कि विवाह की इच्छुक युवतियाँ निःसंकोच अपना बायोडेटा भेजें, बिल्कुल नहीं डरें। विवाह योग्य वर-कवि सुरेन्द्र दुबे। पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्र्वास करें।''
अखबार के दफ्तार में अपना यह विज्ञापन सौंपते हुए मैंने टेबल पर पडे अखबार को बडी हसरत से निहारा। बाकायदा उसे अपने सिर से लगाकर कहा-एक तेरा सहारा।'' अब मैं पूरी तरह निश्चिंत था। मैंने सोचा कि विवाह योग्य लडकियों के पेरेन्ट्स को नींद तो आती नहीं। कल सुबह पाँच बजे अखबार में विज्ञापन देखते ही सात बजे तक तो मेरे घर आ जाएँगे। कल से अपना भाग्य बदलने वाला है, यह सोचकर मैं सो गया। लेकिन मेरी तकदीर ही खराब थी। इस बार संपादक ने गलती कर दी। वैवाहिक विज्ञापनों के पन्ने पर छापने की बजाय उसने गलती से मेरा विज्ञापन शोक समाचार वाले पेज पर छाप दिया।
शोक समाचार वाले पेज पर छपने वाले विज्ञापनों को कोई भी ध्यान से नहीं पढता। सिर्फ फोटो देखते ही समझ जाता है कि इसका विकेट उड चुका है। लिहाजा लडकियों के पेरेन्टस तो आए नहीं लेकिन सुबह-सुबह मेरे घर के बाहर शवयात्रा में शामिल होने वाले लोगों का जमघट जरूर लग गया।
लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने तुरंत एक मैरिज ब्यूरो खोल लिया। अपने आफिस पर बडा सा बोर्ड टाँगकर उस पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखवाया- दुल्हन वही जो दुबेजी दिलाएँ।'' चार दिन बाद बगल में दूसरा आफिस खुल गया जिसके बोर्ड पर लिखा था- तलाक वही जो चौबे जी कराएँ।''
चौबे ने सोचा कि दुबे जो खुद शादी नहीं कर सका, जरूर दूसरों के ऊटपटांग रिश्ते करवाएगा। ऐसे में इसका हर कस्टमर छः महीने बाद रोता हुआ मेरे पास आएगा। उसे सफलता के लिए अपनी योग्यता की तुलना में मेरी अयोग्यता पर ज्यादा भरोसा था। दोनों की कोशिशें अलग-अलग तरह की थीं। मैं बंधन बेच रहा था और वह मुक्ति। सामाजिक सरोकारों से शून्य लोगों की मजबूरी है कि कभी मेरे पास आए और कभी उसके पास जाए। लेकिन हम दोनों के मन में पता नहीं कौन सा डर है कि दोनों की नजर में एक दूसरे का कस्टमर है।
1 comments:
वाह! आपको हिन्दी ब्लागजगत मे पाकर अच्छा लगा.
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