
अब अगर कोई किसी से भी यह सवाल पूछे कि आजकल भारतीय रेलें कैसी हैं? तो जवाब मिलेगा कि बिल्कुल रेलमंत्री जैसी हैं। जैसी रेलमंत्री हैं, वैसी ही रेलें हैं। दोनों को ही सिग्नल दिखाई नहीं देते। दोनों ही चाहे जब, जिस किसी से टकराने के मूड में रहती हैं। दोनों के ही पास ऐसे टकराव की कोई वजह नहीं होती। हाँ टक्कर इतनी भयानक होती है कि देखने वाले डर जाते हैं। कुछ तो टक्कर की दहशत से ही मर जाते हैं।
पिछले चुनावों में उनकी टी.एम.सी. एक्सप्रेस ने सीपीएम एक्सप्रेस के ऐसी टक्कर मारी कि कांग्रेस का बायां और बीजेपी का दायाँ कान फट गया। घायल सीपीएम तो तब से अब तक शायद अस्पताल में भर्ती है।
रेल दुर्घटना में कई लोग मरे। जो मरे उन पर आश्रित लोग जीते जी ही मरे समान हो गए। रेल मंत्री का सारा ध्यान पश्चिम बंगाल के चुनावों पर है। रेल यात्री मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष गुहार लगा रहे हैं कि वे पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव जल्दी करवा दें। अगर वे जीत गईं तो पश्चिम बंगाल की सीएम बन जाएँगी और और अगर हार गई तो प्रधानमंत्री में उनका मंत्रालय बदलने की हिम्मत आ जाएगी। दोनों ही स्थितियों में रेलयात्रियों को राहत मिल जाएगी।
लोग कहते हैं कि नैतिकता के आधार पर उन्हें त्यागपत्र देना चाहिए। यह गलत बात है। राजनीति में नैतिकता को आधार बनाना गलत है। आधार हमेशा नीचे रहता है। ऐसे में नैतिकता के आधार पर चलने वाला राजनेता नैतिकता को कुचल देता है। नैतिकता की रक्षा करना प्रत्येक राजनेता का धर्म है। जरूरी है कि आधार वह स्वयं बने और फिर नैतिकता को जैसा चाहे वैसा चलाए। आजकल की राजनीति यही कहती है। अगर रेल दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ तो हो सकता है प्रधानमंत्री जनसंख्या नियंत्रण विभाग का भी प्रभार उन्हें सौंप दें।
फिलहाल उन्हें ध्यान रखना होगा कि फिलहाल वे रेलमंत्री हैं, जनसंख्या नियंत्रण मंत्री नहीं। वे चाहें तो यह बयान जारी कर सकती हैं कि रेल दुर्घटनाओं से बीमा कम्पनियों के कारोबार में उछाल आएगा जो कि बीमे के कारोबार और देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
पिछले चुनावों में उनकी टी.एम.सी. एक्सप्रेस ने सीपीएम एक्सप्रेस के ऐसी टक्कर मारी कि कांग्रेस का बायां और बीजेपी का दायाँ कान फट गया। घायल सीपीएम तो तब से अब तक शायद अस्पताल में भर्ती है।
रेल दुर्घटना में कई लोग मरे। जो मरे उन पर आश्रित लोग जीते जी ही मरे समान हो गए। रेल मंत्री का सारा ध्यान पश्चिम बंगाल के चुनावों पर है। रेल यात्री मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष गुहार लगा रहे हैं कि वे पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव जल्दी करवा दें। अगर वे जीत गईं तो पश्चिम बंगाल की सीएम बन जाएँगी और और अगर हार गई तो प्रधानमंत्री में उनका मंत्रालय बदलने की हिम्मत आ जाएगी। दोनों ही स्थितियों में रेलयात्रियों को राहत मिल जाएगी।
लोग कहते हैं कि नैतिकता के आधार पर उन्हें त्यागपत्र देना चाहिए। यह गलत बात है। राजनीति में नैतिकता को आधार बनाना गलत है। आधार हमेशा नीचे रहता है। ऐसे में नैतिकता के आधार पर चलने वाला राजनेता नैतिकता को कुचल देता है। नैतिकता की रक्षा करना प्रत्येक राजनेता का धर्म है। जरूरी है कि आधार वह स्वयं बने और फिर नैतिकता को जैसा चाहे वैसा चलाए। आजकल की राजनीति यही कहती है। अगर रेल दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ तो हो सकता है प्रधानमंत्री जनसंख्या नियंत्रण विभाग का भी प्रभार उन्हें सौंप दें।
फिलहाल उन्हें ध्यान रखना होगा कि फिलहाल वे रेलमंत्री हैं, जनसंख्या नियंत्रण मंत्री नहीं। वे चाहें तो यह बयान जारी कर सकती हैं कि रेल दुर्घटनाओं से बीमा कम्पनियों के कारोबार में उछाल आएगा जो कि बीमे के कारोबार और देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।