शराब
नशा-दशा
वोटर घर में बैठकर, सबकी मदिरा लेय।
जैसा जिसका ब्राण्ड है, वैसा ही फल देय।।
अतिमादक यह पेय, मजा खासा आएगा।
रहा जो साथ नशा, दशा बिगड़ी पाएगा।।
मतिअन्ध
कर शराब से आचमन, बारम्बार सराहि।
मतदाता मतिअन्ध तू, वोट बेचता काहि।।
फिर पीछे पछताहि, समझ ले वचन हमारे।
यहाँ बेचकर वोट सदा मतदाता हारे।।
मौका
सब ही मौका माँगते, पिला-पिला कर पेय।
जो भी मौका पा गया, वो ही धोखा देय।।
धन जिनका पाथेय, नहीं देंगे वो जीने।
पी ली अभी शराब पड़ेंगे आँसू पीने।।
मदिरा-राज
बदतमीज सब नालियाँ, नदियाँ ओढ़ें लाज।
कुएँ सूख सारे गए, सागर भी मोहताज।।
मदिरा करती राज, बनाकर हमें पियक्कड़।
भड़का करके प्यास बने वो लालबुझक्कड़।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल
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