Tuesday, September 29, 2015

कुर्सी तू बड़भागिनी - 11

रिश्वत कांड

बाकी कपड़े

रिश्वत वाली टेप से, सभी रह गए दंग।
कैसे-कैसे दिख रहे नेताओं के रंग।।
बदल चुके सब ढंग, बड़े तगड़े हैं लफड़े।
अभी फटेंगे और देखिए बाकी कपड़े।।

मलाल

रिश्वत वाली बात पर, मुझको बहुत मलाल।
मेरे रहते खा गया, यही अकेला माल।।
गल भी जाती दाल, बाँटकर के जो खाता।
धरती पर बैकुण्ठ सरीखे सब सुख पाता।।

धन-स्नान

सुबह-सुबह कहने लगा, भ्रष्टाचार स्वमेव।
एक तरफ जोगी खड़े, एक तरफ हैं देव।।
माल झपट सब लेव, हाल दोनों के चंगे।
नित्य करें धन-स्नान बोलकर हर-हर गंगे।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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