मतदाता की नियति
कुआँ-खाई
तुम ही कहो चुनाव में, सौंपें किसको डोर।साँपनाथ इस ओर हैं, नागनाथ उस ओर।।
गुण्डे! डाकू! चोर! सभी दिखते हरजाई।
इधर पड़ो तो कुआँ, उधर है गहरी खाई।।
माल
माल धरे सो आज धर, आज धरे सो अब्ब।कल तो मत पड़ जाएँगे, बहुरि धरेगो कब्ब।।
समझ चुके हैं सब्ब, ये लक्षण देखा-भाला।
फिर चुनाव के बाद कौन है आने वाला?
तकदीर
वोटर की तकदीर में, जाने क्या है खोट।देता जिसको वोट है, वही लगाता चोट।।
अभी दिखाकर नोट, कभी विस्फोट कराता।
गोट पीटकर सदा ओट में वह छिप जाता।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
मेरी प्रकाशित पुस्तक
'कुर्सी तू बड़भागिनी'
में प्रयुक्त नवछंद- कुण्डल
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