Friday, November 20, 2015

गीत : मोक्ष पथ

जितने घाव दिए हैं तुमने, वे मैंने इसलिए सहेजे ।
नयन नीर से पीड़ाओं की औषधियाँ तैयार करूँगा ।।
    मैं तो ऐसा घर हूँ जिसमें
        मात्र वेदनाएँ रहती हैं
    निकली जो नयनों से नदियाँ
        पहले वे भीतर बहती हैं
जितने घाव लिए हैं तुमने, वे सब वंशवृद्धि में रत हैं
घावों की इस वंशबेल का सींच-सींच सत्कार करूँगा ।।    
    हो सकता है पूर्वजन्म में
         मैंने कुछ पीड़ाएँ दी हों
    सम्भव है वे पुनर्भरण में
        तुमने मुझे समर्पित की हों
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे उस ऋण का चुकतारा हैं
पाउँगा-जीऊँगा इनको, आगे नहीं उधार करूँगा ।।
             जीवन खाताबही सरीखा
                  लेनदेन सारे हैं अंकित
             सौदा कोई नया न करलूँ
                  सोच-सोचकर हूँ आतंकित
जितने घाव दिए हैं तुमने, सहनशक्ति को परख रहे वे
हँसकर सहन करूँगा लेकिन आगे नहीं उधार करूँगा ।।
    किसे पता है इस दुनिया में
        कितनी बार और आना है ?
    आए तो भी क्या होंगे हम
        यह रहस्य किसने जाना है ?
जितने घाव दिए हैं तुमने, वे सब हैं अनमोल धरोहर
भीतर-भीतर ही दहकूँगा, व्यक्त किन्तु आभार करूँगा ।
    मेरे पास पुष्प हैं केवल
        तुम चाहे सारे ले जाओ
    मैं न कभी उल्हाने दूँगा
        चाहे प्रतिपल शूल चुभाओ
जितने घाव दिए हैं तुमने ,वे सबके सब हरे-हरे हैं
प्रायश्चित के पावन पथ का , मैं इनसे शृंगार करूंगा ।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
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