Monday, November 16, 2015

काल-चिंतन

कौन जानता है जीवन के अगले पल में क्या होना है ?
बुझते-बुझते कई जल गए, कई बुझ गए जलते-जलते ।।
    समझो तो अपने जीवन में
        आने वाला पल कैसा है ?
    जिसमें घुप्प अँधेरा केवल
        ऐसी एक गुफा जैसा है!
उसी गुफा के भीतर जाकर मैंने बार- बार देखा है
रुकते-रुकते कई चल पड़े, कई रुक गए चलते-चलते ।।
    जग में आए और गए सब
        जब-जब जैसा जिसका क्रम था
    कई लोग ऐसे भी देखे
        जिन्हें सूर्य होने का भ्रम था
तम के सम्मुख समरांगण में उदय-अस्त का खेल निराला
उगते-उगते कई ढल गए, कई उग गए ढलते-ढलते ।।
    बिना चले कुछ आगे निकले
        कुछ दौड़े पर हमसे पिछड़े
    कुछ सहयात्री साथ चले तो
        कुछ यायावर असमय बिछुड़े
सम्बन्धों के इस अरण्य में, पृथक-पृथक प्रारब्ध सभी का
भाते-भाते कई खल गए, कई भा गए खलते-खलते ।।
    सपने सा संसार सलौना
        जीने का रोमांच सघन है
    पर भविष्य से अनुमानों की
        जैसे जन्मजात अनबन है
हर रहस्य के सिंहद्वार पर, लटके हुए नियति के ताले
खुलते-खुलते कई छल गए, कई खुल गए छलते-छलते।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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