Wednesday, November 18, 2015

गीत : दिवगंत पिता के प्रति

यह प्रलय सी खिन्नता रोती नहीं गाती नहीं है
भूल तो पाया नहीं पर याद भी आती नहीं है ।।

      शुष्क-सोयी चेतना चंचल बहुत है
    वेदना के प्राण में हलचल बहुत है
      अब नदी भी रेत की ही पर्त है पर
    रेत के नीचे अभी भी जल बहुत है
यह सघन जलराशि लेकिन सिन्धु तक जाती नहीं है
भूल तो पाया नहीं पर याद भी आती नहीं है ।।

      उस समूचे दृश्य से मैं डर गया था
          मन तुम्हारे साथ में ही मर गया था
      एक भी आँसू न निकला आँख से पर
          उर समूचा आँसुओं से भर गया था
यह प्रबल संवेदना भी मोह बरसाती नहीं है
भूल तो पाया नहीं पर याद भी आती नहीं है

     साथ में फिर से तुम्हारे मैं खिलुंगा
    यह अटल व्रत है न मैं इससे टलुंगा
      मेघ ज्यों मिलते परस्पर हैं गगन में
      मैं कभी तुमसे पुन: आकर मिलुंगा
कड़कडाती दामिनी मुझको डरा पाती नहीं है
भूल तो पाया नहीं पर याद भी आती नहीं है ।।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com

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