मेरे भीतर ही है रावण
मेरे भीतर राम
जीवन देवासुर संग्राम ।
रात अँधेरी उजियारा दिन
रहें नहीं संग्राम किए बिन
साँझ के पीछे सुबह पड़ी है
सुबह केपीछे शाम
जीवन देवासुर संग्राम
ये विपरीत परस्पर ऐसे
शीत -ऊष्ण होते हैं जैसे
नित्य युद्धरत हैं दोनों ही
किए बिना विश्राम
जीवन देवासुर संग्राम
एक बार बिसराकर अनबन
कर डाला सागर का मंथन
भोले के हिस्से विष आया
निकला यह परिणाम
जीवन देवासर संग्राम
समझो और स्वयं ही जानो
निज कर्तव्य कर्म पहचानो
लंका में मन भटके अथवा
बसे अयोध्या धाम
जीवन देवासुर संग्राम
भ्रमित जी रहे सब नर-नारी
बीती उम्र स्वप्न में सारी
क्या करने आए थे जग में
करने लगे क्या काम ?
जीवन देवासुर संग्राम ।।
मेरे भीतर राम
जीवन देवासुर संग्राम ।
रात अँधेरी उजियारा दिन
रहें नहीं संग्राम किए बिन
साँझ के पीछे सुबह पड़ी है
सुबह केपीछे शाम
जीवन देवासुर संग्राम
ये विपरीत परस्पर ऐसे
शीत -ऊष्ण होते हैं जैसे
नित्य युद्धरत हैं दोनों ही
किए बिना विश्राम
जीवन देवासुर संग्राम
एक बार बिसराकर अनबन
कर डाला सागर का मंथन
भोले के हिस्से विष आया
निकला यह परिणाम
जीवन देवासर संग्राम
समझो और स्वयं ही जानो
निज कर्तव्य कर्म पहचानो
लंका में मन भटके अथवा
बसे अयोध्या धाम
जीवन देवासुर संग्राम
भ्रमित जी रहे सब नर-नारी
बीती उम्र स्वप्न में सारी
क्या करने आए थे जग में
करने लगे क्या काम ?
जीवन देवासुर संग्राम ।।
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