कार और सरकार में एक बड़ी समानता यह है कि ये दोनों आदमी का स्टेट्स सैट करती हैं। इसलिए कहा जाता है कि कार तो कार है, भले ही कबाड़ की हो। सरकार तो सरकार है भले ही जुगाड़ (गठबन्धन) की हो। कबाड़ की कार और जुगाड़ की सरकार चलाने वाला यह जानता है कि उसे रह-रह कर किश्तें चुकानी है। अगर किश्तें नहीं चुका पाया तो अपनी इज्जत गंवानी है।
प्रसंग शादी के लिए रिश्ता तय करने का था। लड़के का पिता अर्द्धआदर्शवादी था। वह अपने मुँह से तो दहेज की माँग नहीं करना चाहता था लेकिन अपने कानों से जरूर सुनना चाहता था कि लड़की का पिता दहेज में क्या-क्या देने वाला है? इसलिए वह न तो 'हाँ' कर रहा था न ही 'ना' कर रहा था। तभी चतुर बिचोलिये ने मोर्चा सम्हाला। उसने लड़के और लड़की के पिता को सुनाते हुए एक गाना गुनगुनाया-
लड़का खुद लड़की से
शादी करने को बेकरार है
कहो ना कार है!
लड़की के पिता ने ज्योंही कहा वह दहेज में कार देने वाला है- बात बन गई। अगर कार से नहीं बनती तो वह कहता कि दहेज में कार तो देंगे ही और साथ में एक साल का पैट्रोल का खर्चा मुफ्त, स्कीम में! खैर, स्कीम की नौबत नहीं आई।
सब कार देखते हैं। कोई नहीं पूछता कि कार कैसे पाई है। नकद खरीदी है, कर्ज में ली है या दहेज में आई है। अगर देहज में पाई है तो क्या कहने। नेकी और पूछ-पूछ। मुफ्त का माल हम लोगों को बहुत भाता है। इसलिए दहेज में कार मिलने की बात होते ही लड़के के पिता को साकार होता दिखाई दिया सपना। वह मन ही मन गाने लगा-
राम नाम जपना
पराया माल अपना
नई नवेली लाडी को नई नवेली गाड़ी में बिठाकर दुल्हा फूला नहीं समा रहा था। वह गाड़ी खुद चला रहा था। दुल्हन को सुसराल से अपने घर ला रहा था। मुफ्त का माल मिला था। इसलिए मन ही मन इतरा रहा था। तभी हाईवे पर खड़ी एक अन्य कार ने उसकी कार को ओवरटेक किया। चार-पाँच मुस्टण्डे उतरे उन्होंने दुल्हा और दुल्हन की कार को रोका उन्हें उतारा और गाड़ी को जबरन उठाकर ले गए। तब बात यों समझ में आई थी कि ससुर जी ने कार छ: महीने पहले लोन पर उठाई थी। कार तो नई-नई थी लेकिन एक भी किश्त नहीं चुकाई थी। इसलिए लोन की कार को फाइनेन्सर का फ्रीलांसर उठाकर ले गया। विरोध करने पर दुल्हे के दो-चार हाथ जमा दिए। ये तो अच्छा हुआ कि उन्होंने गाड़ी ही सीज की। लाडी को सीज नहीं किया। वरना लेने के देने पड़ जाते। मुफ्त की कार में सवार मुफ्त खोर अपनी सुहागरात जंगल में सड़क के किनारे ही मनाते। इसलिए कहा गया है कि-
पैसा खूब कमाइए, बिन पैसा सब सून।
बिन पैसे तो मनेगा सड़क पे हनीमून॥
Saturday, April 17, 2010
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15 comments:
वाह ! क्या खूब लिखा है,मज़ा आ गया...."
पैसा खूब कमाइए, बिन पैसा सब सून।
बिन पैसे तो मनेगा सड़क पे हनीमून॥
BAHUT KHUB
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
दहेज पर अच्छा व्यंग किया है...
पैसा खूब कमाइए, बिन पैसा सब सून।
बिन पैसे तो मनेगा सड़क पे हनीमून॥
कहो ना कार है.....को करारी मार दी है आपने ...!!
ye word verification hta lein .....!!
vaah...bahut badhiya vyangy...
दुवे जी आपका बेहद आभार .मेरे ब्लाग पर आने
के लिये .वास्तव में मैं न तो व्यंग्य करता हूँ और
न ही सामाजिक दृष्टिकोण के प्रति अपनी जिम्मेवारी
समझता हूँ .आपने जिन्दगी का हिसाब किताब में
जो पङा मैं उसका वास्तविक आचरण करता हूँ
सच यही है कि हमारे पास इन बातों के लिये कतई
समय नहीं है .जैसे शापित परीक्षित को सात दिनों
में मुक्ति कर लेनी थी वही स्थिति हरेक जीव की है
इसमें चूक जाने पर लगभग बारह लाख बरस की
चौरासी भुगतनी होती है और ये अच्छे कर्मों से नहीं
बल्कि विशेष ग्यान से दूर होती है . श्रीकृष्ण ने कहा
कि अर्जुन मुक्ति ग्यान से है कर्म से नहीं पुनः आपको
शुभकामनांए
मजा आगया पढ़ के ........ व्यंग कोई आप से सीखे ....... मंचो पे तो कई बार सुना आप का ब्लॉग देख कर ख़ुशी हुई
व्यंग काफी बेहतरीन है
kamaal ka likha hai janaab. thoda sa aur kadak kar dete to jyada maja aata.
bhut bdiya.....
damdar lekh h................
maja aa gya....................
kyaa bat h..........
वह तितली
उड़ने की कोशिश में,
नाकामयाव......
उसकी पंखो को,
कुतर दी गई है,
बंदिस रूपी खंजर से.
चाहती थी वह,
उड़ना.....
अनंत तक
चहकना.....
अरमानो के मुडेर पर,
फुदकना.....
दिल की आँगन में.
स्वर्ण पिंजरा को छोड़कर,
उड़ने के लिए
खुले आकाश में.
चाहत की दरवाजे को,
पार कर जाना चाहती थी,
वह तितली.
सर जी, बहुत ही सीधी सी बात में गहराई से तौल दिया है समाज को , यह व्यंग्य काफी है समाज के असली रूप को निहारने के लिए........... धन्यवाद , मेरे ब्लॉग पर भी आयें, ....
wah
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