Tuesday, April 27, 2010

सरस्वती जी का त्याग पत्र

पिछले दिनों सरस्वती जी ने ब्रह्माजी को यह कहते हुए त्याग पत्र दे दिया कि अब मुझे नहीं रहना सरस्वती। आप मेरी जगह किसी अन्य सरस्वती को नियुक्त कर दीजिए। ब्रह्माजी ने पूछा-''देवी आप इतनी कुपित किसलिए हैं। ऐसा क्या हो गया जो आप अपना पद त्याग देने को आमादा हैं? सरस्वती जी ने जवाब दिया-''मैं अभी-अभी एक कवि सम्मेलन सुनकर आ रही हूँ। उस कवि सम्मेलन को सुनने के पश्चात् मैंने यह तय किया है कि मुझे अपने पद पर बने रहने का अब अधिकार नहीं। नैतिकता के नाते मुझे अपना पद छोड़ देना चाहिए।"
ब्रह्माजी ने पूछा- देवी! ऐसा क्या हो गया उस कवि सम्मेलन में जो आप अपना पद छोड़ देने पर आमादा हैं? सरस्वती जी ने जवाब दिया-''क्या-क्या नहीं हुआ? कवि कह रहा था कविता मेरी है और कविता कह रही थी मैं दूसरे की हूँ। कवि कह रहा था कि जो रचना मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ, यह कविता है। और वह रचना कह रही थी कि मैं चुटकुला हूँ। आप ही बताओ इन टिपीकल मुकदमों का फैसला कैसे किया जाए?"
सरस्वती जी की बात सुनकर ब्रह्माजी का दिमाग चकराने लगा। उन्होंने कहा-''देवी! लेकिन ये सारे कवि तो आपके ही उपासक हैं। इन्हें समझा दीजिए। त्याग पत्र देने की क्या जरुरत?" लेकिन बीच में ही बात काटते हुए सरस्वतीजी ने कहा- ''आपको पता नहीं है प्रभो! आजकल के कवि बड़े चालाक हो गए हैं। ये ऊपर से तो मुझमें श्रद्धा दर्शाते है लेकिन सच्चे मन से प्यार लक्ष्मी जी से ही करते हैं। ऐसे में उचित यह रहेगा कि आप मेरे डिपार्टमेंट का एडीशनल चार्ज लक्ष्मी जी को ही दे दीजिए। रही इन मुकदमों की बात तो इनका फैसला तो उनका वाहन ही कर देगा। जाति बिरादरी का फैसला तो वैसे भी भारतीय न्याय शास्त्र में वैसे भी सर्वमान्य होता है।"
ब्रह्माजी बोले-''देवी आपका सुझाव बुरा नहीं है। लेकिन मैं आपका त्याग पत्र स्वीकार नहीं करुँगा। आप मुझे बताएँ कि आप आजकल के इन कवियों से आप क्या कहना चाहती हैं? मैं अभी सबको एस.एम.एस. कर देता हूँ। सब ठीक हो जाएँगे।"
इस पर ब्रह्माजी से सरस्वती जी ने जो कहा वह संस्कृत भाषा में एक श्लोक के रूप में था। उस श्लोक का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है- हे ब्रह्माजी! आप इन कवियों को समझाइये कि कविता नहीं लिखने से न तो अपयश मिलता है। न किसी प्रकार की कोई व्याधि होती है, न पाप लगता और न ही नरक की प्राप्ति होती है। लेकिन बुरी कविता लिखने से और चुराई हुई कविता सुनाने से तथा चुटकुले को कविता बताने से इन चारों की प्राप्ति एक साथ होती है।

27 comments:

vandana gupta said...

waah........kyaa baat kahi hai.

Fauziya Reyaz said...

arree waah...kya baat hai...superb

Amitraghat said...

"हा..हा..हा...कितना मज़ेदार व्यंग था...आनन्द आ गया..."

Sushil Joshi / सुशील जोशी said...

Sir, aapne bilkul thik kaha hai. Main aapki is baat se puri tarah sehmat hoon.

"Aapki baat bilkul sachchi hai,
Ki aaj ke jamane ke anusar
Saraswati ji se to
Laxmi ji jyada achchi hai."

योगेन्द्र मौदगिल said...

theek kaha aapne.....
badiya drishtant....
sadhuwad..

Unknown said...

वाह जी वाह! क्या खूब कहा. इस ज़माने में तो सरस्वतीजी की जगह लक्ष्मीजी ने ही ले रखी है.

रश्मि प्रभा... said...

waah....saraswati ji ka tyaagpatra bahut badhiyaa

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

ये सच है कि अब तो सभी देवी-देवताओं में माता लक्ष्मी ही सबसे शक्तिशाली देवी बन गयी है ... अच्छा व्यंग्य है ... बधाई !

तेजवानी गिरधर said...

मज़ेदार व्यंग्य है...आनन्द आ गया. बधाई

manu said...

nice ..

,





,,

शरद कोकास said...

दुबे जी नमस्कार । आपके हम नाम डॉ.सुरेन्द्र दुबे मेरे पड़ोसी है । उनसे आपके बारे मे सुना था । यहाँ ब्लॉग जगत मे देखकर अच्छा लगा ।

lal saini said...

bhut shanddar

lal saini said...

bhut shanddar!

Pawan Kumar said...

कविवर
सचमुच पोस्ट बड़ी ही रोचक है......शानदार पोस्ट !
वाह जी वाह! क्या खूब कहा.वैसे यह भी सच है कि इस ज़माने में तो सरस्वतीजी की जगह लक्ष्मीजी ने ही ले रखी है.

Dimple Maheshwari said...

हा हा...हा.....जी अगर हम कभी गलती से भी बुरी कविता लिख बेठे तो हमे जरुर सचेत कीजियेगा....

✵✺✵ मैथिल ✵✺✵˙ said...

बहुत सुन्दर सर ...

हरकीरत ' हीर' said...

प्रभो! आजकल के कवि बड़े चालाक हो गए हैं। ये ऊपर से तो मुझमें श्रद्धा दर्शाते है लेकिन सच्चे मन से प्यार लक्ष्मी जी से ही करते हैं......

सही कहा आपने ....बहुत खूब .......!!

हास्य कविता के महारथी को नमन ... .....

adhuri baaten¤¤~~ said...

मैं आप सब जितना तो शब्दों का धनि नहीं हूँ, लेकिन इतना ही कहूँगा, कि यह अर्टिकल उन कवियों के लिए एक मीठे विष कि छुरी है,, जो कि चोरी कि कवितायेँ बोल कर उसे खुद का बताते हैं, और बेवजह के चुटकुले को कविता का नाम देते हैं!


अंत में बस यही कहूँगा, कि आपका यह अर्टिकल मुझे बेहद उम्दा लगा!

Anonymous said...

shanddar lekh h........

हर्षिता said...

अच्छा व्यंग है।

alka mishra said...

दूबे जी ,व्यग्य तो अच्छा लगा
किन्तु मैं कुछ और सोच रही हूँ -
जरूर सरस्वती जी ने ये भी कहा होगा की व्यंग्य लेखक को अपने नाम के आगे कवि लगाना पाप है और आप ये बात बड़ी खूबसूरती से पचा गये

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

lal saini said...

acha laga.........

Unknown said...

क्या व्यंग्य लिखा है. बधाई.

आचार्य उदय said...

आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी

Ria Sharma said...

Interesting ..haha

Unknown said...

2018

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